खंडेलवाल समाज की नई पहल: एक दिन का विवाह समारोह और प्री-वेडिंग शूट पर रोक

हाल ही में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार, अखिल भारतीय खंडेलवाल वैश्य समाज ने आगामी दिसम्बर माह में आयोजित होने वाले महासम्मेलन में यह निर्णय लिया है कि समाज स्तर पर प्री-वेडिंग शूट, डेस्टिनेशन वेडिंग, इवेंट आधारित विवाह आदि दिखावटी आयोजनों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाएगा तथा विवाह समारोह मात्र एक दिन का होगा।

इस निर्णय के संदर्भ में अखिल भारतीय खंडेलवाल वैश्य सेवा सदन, पुष्कर के सचिव Shri Ajay Khunteta ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है –

समाज स्तर पर यह कदम सर्वजन हिताय है। आज के इस प्रतिस्पर्धात्मक और होड़ के युग में प्रायः हम सभी अपने परिवार के एक-दो दिन के मांगलिक कार्यक्रमों में जीवन भर की कमाई की पूंजी व्यय कर देते हैं। साथ ही विवाह जैसे प्रमुख एवं सार्थक संस्कार – पाणिग्रहण – को गौण कर देते हैं और प्री-वेडिंग शूट, डेस्टिनेशन वेडिंग, इवेंट आधारित कार्यक्रम, निर्धारित परिधान आदि जैसे दिखावटी आयोजनों को अधिक महत्व देने लगे हैं। इससे न केवल सात फेरों की वास्तविक महत्ता कम होती जा रही है, बल्कि इस होड़ में रिसोर्ट, इवेंट मैनेजमेंट, फोटोग्राफी, कैटरिंग आदि पर जीवनभर की मेहनत से संचित पूंजी व्यर्थ हो जाती है।

यदि इन सभी अनावश्यक आयोजनों में व्यय होने वाली राशि को सीमित कर, उसे वर-वधु के भावी जीवन की योजना हेतु फ्लैट, प्लॉट, फिक्स्ड डिपॉजिट, बांड आदि में निवेश किया जाए तो वह दंपत्ति अपने नए जीवन को अधिक स्थिर, मजबूत एवं सुरक्षित बना सकते हैं। इससे उनका वैवाहिक जीवन भी स्वर्णिम हो सकता है।

व्यथा इस बात की है कि इतने तन, मन और धन के व्यय के पश्चात भी वैवाहिक बंधन की दृढ़ता और स्थायित्व निरंतर क्षीण हो रहे हैं। विवाह के कुछ समय बाद ही रिश्तों की डोर टूटती दिखाई देती है तथा तलाक के प्रकरण बढ़ते जा रहे हैं।

सार रूप में यही कहना है कि समाज का यह प्रयास निःसंदेह सराहनीय है। हम सभी का दायित्व है कि इस संकल्प को सफल बनाने में सहयोग दें। यद्यपि यह सभी के लिए एक कठिन कार्य है, क्योंकि प्रत्येक परिवार में यह तर्क प्रचलित है कि ‘यह मेरा पहला कार्य है’ अथवा ‘यह मेरा अंतिम कार्य है’। परंतु वर्तमान में प्रायः सभी परिवारों में एक या दो ही वैवाहिक आयोजन होते हैं। अतः यदि पहला कार्य है तो उसे सीमित रखें और यदि अंतिम है तो भी अपव्यय से बचें।

यदि हम इस कार्यक्रम के माध्यम से अपव्यय को रोककर, उस राशि को वर-वधु के भविष्य हेतु सुरक्षित कर पाएं, तो निश्चय ही उनका वैवाहिक जीवन स्वर्णिम, स्थिर और सुखमय बन सकेगा।

निस्संदेह, खंडेलवाल समाज द्वारा लिया गया यह निर्णय समय की आवश्यकता प्रतीत होता है, जो न केवल अनावश्यक खर्चों पर नियंत्रण स्थापित करेगा, बल्कि वैवाहिक संस्कारों की मूल भावना और परंपराओं को भी पुनः सुदृढ़ करेगा। यदि समाज के सभी वर्ग इस पहल को अपनाते हैं तो निश्चित ही आने वाली पीढ़ियाँ आर्थिक रूप से सशक्त और स्थिर वैवाहिक जीवन की ओर अग्रसर होंगी।

हालांकि, यह भी आवश्यक है कि इस निर्णय को लागू करते समय व्यक्तिगत स्वतंत्रता, परिवार की विशेष परिस्थितियाँ और नई पीढ़ी की सोच का भी सम्मान किया जाए। प्रत्येक परिवार की आर्थिक स्थिति, प्राथमिकताएँ एवं सामाजिक दायित्व भिन्न हो सकते हैं। इसलिए इस दिशा में प्रयास करते समय संवाद, सहमति और लचीलेपन का समावेश होना चाहिए ताकि परंपरा और आधुनिकता में संतुलन बना रहे।

कुल मिलाकर, यह पहल समाज में सादगी, सहिष्णुता और व्यर्थ प्रदर्शन की प्रवृत्ति पर लगाम लगाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम हो सकता है, बशर्ते इसे विवेकपूर्ण, समावेशी और सबकी भावनाओं का सम्मान करते हुए लागू किया जाए।

Disclaimer:

इस लेख में व्यक्त विचार श्री अजय जी के व्यक्तिगत विचार हैं, जो हाल ही में खंडेलवाल समाज द्वारा लिए गए निर्णय पर आधारित हैं। लेख का उद्देश्य समाज में हो रहे परिवर्तनों और इस विषय पर विभिन्न दृष्टिकोणों को प्रस्तुत करना है। यह लेख न तो किसी की व्यक्तिगत या पारिवारिक परंपराओं पर निर्णय देने हेतु है और न ही किसी विशेष विचारधारा का समर्थन या विरोध करता है। पाठकों से निवेदन है कि वे इस विषय पर अपने विचार एवं निर्णय स्वयं की परिस्थितियों, मान्यताओं तथा प्राथमिकताओं के अनुसार करें।